स्त्री की गरिमा, जीवन की मर्यादा और भारत की आत्मा

स्त्री की गरिमा, जीवन की मर्यादा और भारत की आत्मा
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हमारे स्वप्निल आदर्श हैं डा.राम मनोहर लोहिया।उन्होंने अपने
समर्थक समाजवादियों को राजनीति के तीन साधन बताये थे।
एक-जेल,दो-फावड़ा और तीन- वोट।हम इन तीन साधनों मे
सबसे ज्यादा महत्व वोट को देते हैं।सत्याग्रह और श्रमदान तो
भूल ही चुके हैं।पार्टी संगठन के बारे में उन्होंने कहा कि जब
सत्याग्रह की भावना कार्यकर्ता के मन में बैठ जाये ,वह समाजवादी रीति-नीति-सिद्धांत से लैस हो जाये तब पार्टी की
जरूरत नहीं।वे हर व्यक्ति के विचार में व्यक्तिगत सत्याग्रह की
आग पैदा करना चाहते थे।
एक बार लोहियाजी ने कहा कि यदि कभी केंद्र में समाजवादी
सरकार बनी तो देश के सभी विज्ञान-संस्थाओं और
विश्वविद्यालयों को दो कामों में लगायेंगै।एक -- हर घर में 24
घंटे सुलभ और स्वच्छ शौचालय हो ।दो-हर घर में ऐसा चूल्हा
हो जिसके दमघोंटू धुएं से स्त्री को मुक्ति मिल सके।प्रसंगवश-
एक उदाहरण प्रस्तुत है।जब श्री नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बने
तो वे अमरीका और जर्मनी की ग्लैमरस सभाओं में गये।प्रवासी
भारतीयों ने उनका भव्य स्वागत किया।चकाचौंध से भरी
स्वागत-सभाओं में मोदी ने कहा कि मेरे देश में 24घंटे सुलभ
शौचालय नहीं है।मेरे देश में लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाने
वाली स्त्रियां जहरीले धुंएं में काम करती हैं।टी.वी. पर यह
भाषण सुनते हुए मुझे लोहिया जी बार-बार याद आ रहे थे।
प्रधानमंत्री ने शौचालय( इज्जतघर)बनाने और गैस सिलिंडर
देने का काम शुरू किया है।वे लोहिया का उल्लेख भी करते हैंं।
हम चाहते हैं कि वे लोहिया को पढ़ते रहें।उनसे प्रैरणा लेते रहें।
ये दोनो काम ,शौचालय और निर्धूम चूल्हा हर कीमत पर सभी को सुलभ होनी चाहिये।हर घर में पानी पहुंचाना भी मुश्किल
किंतु जरूरी लक्ष्य है।'तवा-कड़ाही सस्ती हो।दवा-पढ़ाई मुफ्ती
हो'। यह अब सिर्फ समाजवादी नारा नहीं, देश का लक्ष्य है।

लोहिया जी ने लिखा है, जिसे उनकी मनोकामना कह
सकते हैं-

'ए भारतमाता! मुझे शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो
और मेरे जीवन को राम की मर्यादा से रचो।'
सन्1962 में जब पं.जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे तब
चीन  'हिदी-चीनी भाई -भाई' का नारा लगाते हुए हमारी
उत्तरी-पूर्वी सीमाओं पर चढ़ आया।हमारी फौजों के पास गर्म
कपड़े, अच्छे जूते ,हथियार भी नहीं थे।चीन ने40हजार वर्गमील हिमालय पर कब्जा कर लिया।तब नेहरू जी 'जरा
आंख में भर लो पानी' गीत सुन कर रो रहे थे।लोहिया ने
हिमालय की कठिन यात्रायें कीं और विख्यात पुस्तक लिखी-
भारत-चीन और उत्तर-पूर्वी सीमायें'।तभी लोहिया ने कहा था
कि नेहरू की सरकार 'राष्ट्रीय शर्म की सरकार' है।वहीं से
'गैर-कांग्रेसवाद'का जन्म हुआ था। आज भी यह सूत्र प्रासंगिक
है।समान नागरिक संहिता का भी समर्थन लोहिया जी ने काफी
ताकत से किया था।
आज जब हम डोकलाम और गलबान में भारतीय सेना का
 शौर्य ,सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयर स्ट्राइक की
खबरें देखते हैं, धारा-370 का हटना और विश्व-पटल पर
भारत का गौरव सुनते हैं तब खुशी होती है , गर्व होता है।
हम जानते हैं कि हमारे प्रिय नेता लोकबंधु राजनारायण जी ने
अपने अंतिम दिनों में कितना एकाकीपन और शारीरिक
तकलीफें उठायीं।यदि नीतिश कुमार ने जार्ज फर्नांडिस को
राज्य सभा में नहीं बैठाया होता तो वे भी एकांत-दु:खांत में
टूट जातै।राजनीति में सत्य की प्रतिष्ठा होनी चाहिये तथा
मानवीय -संवेदना का मान रखना चाहिये।लोहिया जी ने कहा
था-सबसे  ऊपर राष्ट्र, फिर लोकतंत्र और फिर पार्टी।

ये ग़म नहीं है कि हम दोनों एक हो न सके,
ये रंज है कि कोई दरम्यान में भी न था।
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आलेख:नरेंद्र नीरव
छाया:जितेंद्र मोहन तिवारी

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