पौधों का घोरान: ट्री गार्ड बनाने की चुनौती

पौधों का घोरान: ट्री गार्ड बनाने की चुनौती
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चैती की फसल पक रही है ,कटनी भी चल रही है। पर्वतीय और आदिवासी अंचलों में घास - वनपनास सूख रहे हैं।खेत
खाली हो रहे हैं।अब लोग मवेशियों को खुला छोड़ देंगे ।जहां
भी हरियाली होगी वहां गाय-बकरियां मुंह मारेंगी।यही समय रोपे गये नये पौधों की सुरक्षा मजबूत करने का है।पुराने घोरानों
की भी मरम्मत का काम करना होगा। याद रखिये-बरसात शुरू
होते ही सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर बृहद् वृक्षारोपण का
कीर्तिमान बनाया जाता है।इनमें से अधिकांश पोधे सुरक्षा-घेरा
नहीं होने के कारण मर जाते हैं।यह शर्मनाक है।इससे पौधों
की भ्रूण-हत्या का महापाप लगता है।श्रम और धन की बर्बादी
भी होती है।पौधे माटी के दीप नहीं हैं जिन्हें एक ही शाम को
करोड़ों की संख्या में नदी के घाट पर जला कर हम विश्व
कीर्तिमान बना सकते हैं।पौधे को रोपते हैं तो उनको तीन-चार साल तक बच्चे की तरह पालना होता है। रोपे गये पौधों के
बजाय बचाये गये पौधों का रिकार्ड बनाना होगा।
वनवासी अंचल में पत्थर, कांटे और सूखी-बिखरी लकड़ियों
से घोरान बनाये जा सकते हैं।परिवार के बच्चों और स्त्रियों को पौधे से जोड़ दिया जाये तो पौधे का लालन-पालन भी घर
के सदस्य की तरह हो सकता है।हमलोगों ने ऐसा ही किया।
गुठलियों से घरेलू नर्सरी बनायी। सही जगह रोपाई की।घोरान
बनवाये और गरमी में पानी और निगरानी का वचन लिया।
एक अनुमान के अनुसार पिछले 30 साल में हमलोगों ने लगभग 15हजार पौधे रोपे जिनमें 5 हजार से ज्यादा अब वृक्ष बनकर फल रहे हैं ।जिनके घर पांच फलदार पेड़ हैं उसकी
दरिद्रता घट गयी और खुशियां बढ़ गयीं।जो अभागे सिर्फ पेड़
काटते हैं उनके दरवाजे पर एक भी पेड़ नहीं दीखता।वे बेशर्मी
से कहते हैं- 'रोपल त रहलीं बाकी छेरी खा गइल '! ऐसे लोगों
को क्या वनवासी मान सकते हैं जो हर रोज जंगल काटते हैं
लेकिन एक भी पौधा बचा नहीं पाते।इस समय सभी पौधों का 
सशक्त घोरान बनाना अनिवार्य है।परासपानी के किशोर छात्र शिवकुमार दुबे के रोपे 200पौधे बड़े हो रहे हैं ।अभी वह 60
पौधों का घोरान बना रहे हैं।उनके पिता लल्लू दूबे के लगाये
आम,कटहल, नींबू, जामुन, महुआ, बेल आदि के पेड़ फल
रहे हैं।परासपानी में न परास का पेड़ था न पानी।लल्लू, राम
अधार ,सुखराज, परगट बाबा ने हमलोगों के साथ बंधियां
बनाकर पानी बचाया ।परास के पेड़ भी बचा लिये।अब परास भी है और पानी भी।इमली, महुआ के पेड़ 10-15साल में
फलते हैं।संभव है, पौधा हम रोपें-बचायें और फल अगली
पीढ़ी खाये। तो क्या हम महुआ-इमली नहीं बचायेंगे?
बाबुल भाई, डा. आर .के.गुप्त, महेशानंद भाई, डा. सुशील कुमार राय ,संत हिंगूराम ,संत मोहनदास गोंड़ आदि अनेक
लोगों ने सुरक्षित वृक्षारोपण का महा- प्रयास किया है।यह 
आनंदमय रचनात्मक अभियान जारी है ।धरती का कर्ज चुकाने के निमित्त यह यात्रा आगे जारी रहेगी।

एक दोहा-
कांटा ऐसा बोइये, बन के पहरेदार।
कहे सांड़ से लौट जा, मैं फूलों का यार।।
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चित्र में: पौधे का घोरान बनाते डा. आर. गुप्त और छोटे सिंह गोंड़ ,बभनमरी
आलेख /छाया:नरेंद्र नीरव

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