सोने का पेड़

सोने का पेड़ :युरेनियम की बाड़ी
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सोना यानि स्वर्ण।धन की शक्ति लक्ष्मी को धारण करने
वाला पीला चमकीला धातु।अपनी संप्रभुता के कारण
सोना ही समृद्धि और सौंदर्य का मानक बन गया है। यद्यपि कुछ अन्य धातु भी सोने की तरह महंगे हैं ।जैसे-
प्लैटिनम।फिर भी सोना निर्विकल्प है। सोना सिर्फ तहखानों और तिजोरियों, गहनों और सोनारों में नहीं, 
सहस्त्रों कथाओं, गीतों, कहावतों, किंबदंतियों, वार्ताओं
का भी किरदार है। भारत को सोने की चिड़िया कहते थे,
जब हम सबसे धनी थे तब स्वर्णकाल था ।किसी भी
सुंदर चीज को सोना कहना, सोनपरी, सोनतरी,स्वर्णमृग, सोनचिरई, सुनहरे दिन आदि बोलकर हम सोने का
सम्मान करते हैं ।
इधर कुछ दिनों से मेरे सोनभद्र जनपद में हजारों टन
सोना मिलने की चर्चा चल रही है । उ.प्र.के खनिकर्म
 विभाग के किसी अफसर ने मीडिया को बता दिया कि
सोनपहरी में 2943.26 टन और हरदी में646.1519
कि.ग्रा. सोना मिला है ।इसे निकालने की टेंडर  -प्रक्रिया
शुरू हो चुकी है । इस अफसर और सोनभद्र के डी.एम.
के बीच हुआ पत्र व्यवहार लीक हो गयाऔर मीडिया में 
यह एक सनसनी की तरह वायरल हो गया ।किसी ने
कहा-भारत के मौजूदा स्वर्ण भंडार से पांच गुना अधिक
सोना मिल जाने से अब देश धनी हो गया ।दूसरे ने कहा-
यह सोना सरकार को छूने नहीं देंगे, पहले यहां के युवजन
को काम दो । प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में एक
खुशफहमी को पाजिटिव सनसनी की तरह परोसा गया।
अंतत: भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग को सफाई
देनी पड़ी कि यह खबर गलत है ।यदि खनन और शोधन
किया भी जायेगा तो सिर्फ 160कि.ग्रा. सामान्य किस्म
का स्वर्ण मिल सकता है। यह अज्ञात है कि खनन के बाद इतना( 160किलो ग्राम)सोना निकालने में कितना खर्च
 होगा? मेरे ख्याल से खर्च ज्यादा होगा। पनारी ग्रामसभा
के सोनपहरी टोले में सोने का भंडार होने की कहानी
बहुत पुरानी है ।यह कथा सर्वप्रथम मैने सन् 1980 -85
 में 'गांडीव' दैनिक के साप्ताहिक-विशेषांक में लिखा।
मेरे एक आदिवासी मित्र थे हरिहर गोंड़ उर्फ भालूचोथवा। उन्होंने जवानी में एक बार घने जंगल में
तीन भयानक चंदुआरा भलुंदरो से मुकाबला किया था।
भालुओं ने उनके चेहरे, सीने,पीठ पैर में नोच -खसोट
लिया था। उनका भी चेहरा भालू की तरह हो गया था।
रावर्ट्सगंज में विचार -मंच की कविता-चित्र प्रदर्शनी में
समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस  ने उनसे हाथ मिलाया।
उनके साथ चाय पी। बोले- 'आदिमनुष्य! कैसे भेंट हो
गयी'? भालूचोथवा पर मेरी किताब 'वनवासी भालूचोथवा' (विश्वविद्यालय प्रकाशन वाराणसी )चर्चित है। उनके बारे में बताने का कारण है कि उन्होंने ही मुझे
सोनपहरी की सच्चाई बतायी ।एक रोमांचक कथा भी।
बहुत साल पहले की बात है ।सोनपहरी टोले में एक
बुढ़िया बैगिन रहती थी ।वह पहाड़ी के शिखर पर जाकर
रोज बाबा घमसान को मनाती थी ,जल चढ़ाती थी।इस
बुढ़िया माई ने सभी ग्राम- देवताओं. वनदेवताओं , डीह,
डिहवार ,बघउत, घमासान ,ठैयां, भुइयां, लाखन, पहलवान, देवान आदि को मना लिया था ।
एक दिन बैगिन पुजारिन ने सोनपहरी पर एक विचित्र
पौधा देखा। यह चांदी सा सफेद था और पत्तियां नीले
रंग की थीं ।बुढ़िया पौधे को रोज पानी देती और उसकी
रक्षा करती थी ।एक पूर्णमासी को चांदनी रात में बैगिन
ने देखा कि पौधे में सुनहरे फूल खिले हैं ।उसने सुबह होने
पर फूल तोड़ लिये और वन - देवता को चढ़ा दिया ।वह फूल मुरझाया नहीं ।बुढ़िया फूल घर ले गयी ।कुछ दिनों
बाद उसे लगा कि यह फूल सोने का है। वह फूलों को
लेकर अगोरी बाजार गयी ।वहां बावन गलियां तिरपन
बाजार थे। सोनार ने बताया कि यह शुद्ध सोना है।बुढ़िया
पूर्णमासी के दिन फूल चुनती, देवता को चढ़ाती और बेच
आती थी ।यह बात सोनार ने राजा को बता दिया। राजा
ने बुढ़िया को बुलाया और पता लगाया कि सोने का पेड़ 
कब फूलता है । पूर्णमासी की रात में सोने का फूल खिला
तो राजा तोड़ने को तत्पर हो गया।फूल का पेड़ राजा की
पहुंच से दूर भागने लगा।फूल आगे- आगे, राजा.पीछे-पीछे दौड़ते रहे ।अंतत:सोने के फूल कई पेड़, कई नालों,
पहाड़ियों, जंगलों को फांदता हुआ खेवनाघाट के पास
रेणु नदी में जलसमाधि लेकर लुप्त हो गया।
भालूचोथवा ने यह कहानी सुनायी थी।मैं उनके साथ
सोनपहरी के लिये डाला से पैदल चल पड़ा ।वह हमें न समतल रास्ते से ले गये ,न पगडंडी से न लीक से ।एक 
सूखे हुए नाले में घुसे ।उसी नाले-नाले चले। कहीं-कहीं पानी भी था। नम स्थानों पर धवई, बगई आदि झाड़ियां
और गोह ,सांप भी मिलते गये ।वे वनमानुष थे ।मुझे
काफी डर लग रहा था।लगभग दो घंटे लगातार चलने
के बाद हम सोनपहरी पहुंच गये ।कई पहाड़ियों के बीच
एक पहाड़ी पर तीन फीट वर्गफीट में इतना ही ऊंचा एक
खपरैल का मंदिर था ।इसमें कोई मूर्ति नहीं थी ।एक लोहे
का गुरुदह, व लाल  झंडा लगा था । भालूचोथवा ने कुछ 
मंत्रजाप किया ,फिर नारियल फोड़ कर चढ़ाया ।हमने
प्रसाद लिया और घर से लाये पराठे खाये ।मेरे कहने पर
भालूचोथवा नाले के बजाय गुरमुरा से होते हुए मूख्य
मार्ग से वापस लौटै ।सोनपहरी पर मैने दैखा कि पहाड़ी
में ऊपर से नीचे तक तीन फीट चौड़े और आठ फीट
गहरे  लट्टू की तरह खनन किया गया है ।इसका मतलब
है कि सोना खोजने की तकनीकी कोशिश की गयी ।खनन किये गये कटिंग में कुछ निशान और एक जगह अंग्रेजी में लिखा था--1948 ।
जब दूसरी बार गया तो वहां भारतीय भू- वैज्ञानिक
सर्वेक्षण विभाग की युनिट खोदाई  कर रही थी। तीसरी
बार ओबरा के कुछ मित्रों के साथ गया।वहां की ललछौंही
मिट्टी और कोमल चट्टानें सामान्य हैं। भू-वैज्ञानिकों और
स्वर्णकार बंधुओं की राय से मैं सहमत हूं कि यहां की
भू -गर्भ मिट्टी में सोना संभव है लेकिन उसका शोधन
व्यावसायिक दृष्टि से महंगा है ।इसी तरह के पहाड़ हरदी,
मिर्चाधुरी, रेणुकापार तथा अन्य स्थानों  में पाये गये हैं।
अगोरी के महलपुर में जब  मंजरी का जन्म हुआ तब
सवा पहर सोना बरसता रहा।वहां एक लोकोक्ति है-
'नौ मन सोनवां कवने कोनवां?' किले को चोरों ने सब जगह.खोद डाला है-खजाने की खोज में ।सोनभद्र की
सुनहरी रेत में भी सोना है लेकिन शोधन महंगा है ।गंगा
के जल में चांदी है किंतु महंगा।सोन नदी से सोने का 
कोई तार्किक संबंध नहीं है।सही शब्द है शोण। नदी नहीं,
नद है शोणभद्र ।इसे मागधी और शोणमेहा भी कहते हैं।
वर्षाकाल में यह उफन कर रक्त की तरह लाल हो जाता
है ।शोणनद भी ब्रह्मपुत्र नद की तरह पुल्लिंग है ।महाकवि कालिदास इसे प्रबल वेग का प्रतीक मानते हुए
कहते हैं-शोणइवोत्तरंग:।
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सोनभद्र में युरेनियम का भंडार मिलने की  सनसनी भी
सुर्खियों में है ।इस विषय में मेरी जानकारी सीमित किंतु
अनुभवजन्य है । बात संभवत: 1980के आस-पास की
है। यहां उ. प्र. खनिज विकास निगम का काम चल रहा था । यहां से डोलोमाईट लोहा बनाने वाले कारखानों को
भेजा जाता था। लाईम स्टोन का उपयोग सीमेंट कारखानों में होता था । इमारती गिट्टी, बोल्डर, सोलिंग,
डेढ़ इंच, पौन इंच और हाफ इंच, भस्सी का उत्पादन
निजी खदानों और क्रशिंग प्लांटों से होता रहा है।खनिज
विकास निगम के युवा प्रबंधक इं. ए. के. पांडेय ने एक
दिन बताया कि हमारे बाड़ी माइंस में युरेनियम मिला है। 
एक अमेरिकी माइंस जनरल में लेख प्रकाशित है ।इस
लेख में कहा गया है कि भारत में मिर्जापुर जिले के
दक्षिणांचल में बाड़ी में युरेनियम का डिपाजिट मिल गया
है ।मैने वह अंग्रेजी पत्रिका खनिज कार्यालय में ही एक
बार पढ़ी, फिर लौटा दिया । मैं डाला में बिल्ली-मारकुंडी
ग्राम सभा के टोले बाड़ी में उस खदान में पहुंच गया।
बघ्घानाला से डाला की ओर बढ़ने पर वर्तमान मां वैष्णो
देवी मंदिर के आगे भूरे रंग की एक पहाड़ी है ।इसके
शिखर पर एकमात्र पेड़ है जिसका 30साल पुराना चित्र मेरे पास है ।मैं पहाड़ी पर चढ़ कर पूरब में ढलान की
ओर बढ़ा ।एक खदान है जिससे पत्थर निकाले जाते थे।
वहां एक छोटे तिरपाल की छांह में एक आदमी बैठा था।
उनसे मैने देर तक बातचीत की ।बताने लगे कि कुछ
माह पहले विदेशी आये थे ।उन्होंने निरीक्षण किया ।इसी
खदान के ऊपरी हिस्से में एक भारतीय सहयोगी रात में
रुका ।वह खटिया पर सोया था ।आधी रात में अचानक
उसे चारपाई में कंपन महसूस हुआ ।वह चिल्लाते हुए
भागा ।उसने यह बात विदेशी वैज्ञानिकों को बतायी ।मुझे
पता चला कि जहां युरेनियम मिलता है वहां ऐसी घटना
हो सकती है । इस खदान में निगम ने एक निश्चित गहराई
के नीचे खनन करना बंद कर दिया । मैने सुना था कि
मेरे देश को युरेनियम की जरूरत है ।अभी बिहार की
जादूगोडा खदान से  युरेनियम पत्थर निकालते हैं ।
मैने युरेनियम की खबर बनारस के अखबारों में लिखी
और साथी विधायक शतरुद्र प्रकाश को पूरी कहानी
सुनायी ।उन्हें एक ज्ञापन दिया और प्रदेश सरकार को भी
प्रति भेजी ।शतरुद्र ने इस सवाल को विधासभा में उठाया
और उर्जामंत्री शाही जी ने उत्तर दिया ।मेरे ज्ञापन का भी
उत्तर डाक से भेजा जिसमें युरेनियम खोज का विवरण
था।  व्यावसायिक दृष्टि से लाभदायक नहीं होने से काम
रोक दिया गया ।
सोना और युरेनियम के सपने बिखर गये लेकिन कुछ
टूटे हुए सपने जरूर शेष हैं?जीवंत स्मृतियों के पखेरू हैं
जो कम से कम80 साल पहले तक अतीत में ले जाते हैं।
जिनके पास स्मृतियां नहीं हैं वे दरिद्र हैं ।जो जानबूझ कर स्मृतियों का अनादर करते हैं वे कृतघ्न हैं ।
जब रिहंद बांध बनाने के लिये ब्रिटिशकाल में सर्वे हो रहा
था तब एक भू-वैज्ञानिक ने डूब क्षेत्र में जमीन के नीचे
कोयले का विशाल भंडार पाया था ।सिंगरौली के निवासी
और राजपरिवार के लोग विस्थापन से इनकार कर चुके
थे ।इस इंजीनियर ने राज -परिवार से ढाईलाख रुपये की
मांग की थी ।कहा था कि कोयले का भंडार बचाने के
लिये सरकार बांध का प्रस्ताव रद कर सकती है ।जुझारू
रानी माननीया चुनकुंवरि देवी ने यह प्रस्ताव नहीं स्वीकार किया ।वे विस्थापन के विरुद्ध सतत् संघर्ष करती रहीं।
हम कल्पना कर सकते हैं कि लगभग 1000वर्गमील के
डूब में जो कोयला जलमग्न हो गया उसकी कीमत क्या
होगी? क्या देश के किसी हिस्से में सिंगरौली सरीखा कोई
क्षेत्र बस सकता है?डूबी हुई कश्मीर की बेटी की स्वर्णिम समृद्धि की क्या कीमत हम आंक सकते हैं?यदि पड़ोसी
झारखंड में सोन नदी पर कदवन बांध बन गया तो 70
कि.मी. लंबै क्षेत्र में जो जनपदोध्वंस होगा उसकी क्या
कीमत लगा सकते हैं? एक सामान्य वृक्ष अपने जीवन-
काल में 20 लाख रु. का अवदान देता है ।सोनभद्र में जो
वन विनाश हुआ है उसकी कीमत क्या है?सोचिये जरा-
सोनभद्र में लगभग एक लाख हेक्टेयर वन भूमि कहां उड़
गयी? जैविक-विविधता की दृष्टि से विंध्य का यह अंचल
अनुपमेय है ।यहां का एक वर्ग कि. मी. का सघन मौलिक
वनक्षेत्र जैविक-संपदा की दृष्टि से कनाडा और आस्ट्रेलिया से ज्यादा मूल्यवान है ।वन और खनन विभाग की नादानी से कितने मूल्य के हाईग्रेड डोलोमाईट और लाईमस्टोन को गिट्टी बना कर खपा दिया गया?
प्रतिवर्ष सोनभद्र की नदियों-नालों से जो पानी और मिट्टी
व्यर्थ बह जाता है उसकी कीमत काअनुमान क्या है? ऐसे
ही अन्य अनेक प्रश्न अनुत्तरित हैं ।यह भी सवाल जिंदा   रहेगा कि सोना और युरेनियम कितना है और कहां है?
मैं एक सामान्य विद्यार्थी हूं,विशेषज्ञ नहीं । सुधी पाठक से
 त्रुटियों के लिये कृपांक की अपेक्षा कर सकता हूं क्या?
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आलेख/चित्र:नरेंद्र नीरव

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